कृषि-जलवायु परिस्थितियों में जुताई की आवश्यकताएं (Tillage requirement in agro-climatic conditions in Hindi)
किसान कैसे विभिन्न जलवायु परिस्थितियों में अपने खेत की जुताई करते हैं और अपने खेतों को उत्पादन के लिए विकसित करते हैं।
विभिन्न प्रकार के प्रश्नों के उत्तर और उनसे जोड़ी महत्वपूर्ण जानकारियां को जानने के लिए हमारी इस पोस्ट के अंत तक जरूर बने रहें:
विभिन्न जलवायु परिस्थितियों में खेत की जुताई
कृषि वैज्ञानिकों के अनुसार जलवायु परिवर्तन होती हैं तो इन परिवर्तन के कारण पैदावार या उपज में लगभग 15 से 18% की कमी आ जाती है।
वहीं दूसरी ओर गैर-सिंचित क्षेत्रों में तकरीबन 20 से 25% की कमी हो जाती है। इस जलवायु परिवर्तन के कारण वार्षिक कृषि कमाई 15 से 18% ही हो पाती है।
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कृषि जलवायु क्षेत्र
कृषि जलवायु क्षेत्र (Agro Climatic Zones) के लिए एक भूमि की इकाई आवश्यक होती है जिसके चलते फसलों की किस्मों को जोतने में आसानी हो।
इनका मुख्य उद्देश प्राकृतिक संसाधनों और पर्यावरण की हो रही विभिन्न प्रकार की स्थितियों के चलते बिना किसी दुष्प्रभाव के भोजन चारा लकड़ी, फाइबर आदि के जरिए मिलने वाले ईंधन को सुरक्षित रखना है।
इन कृषि जलवायवी योजना का मुख्य उद्देश मानव तथा प्राकृतिक द्वारा निर्मित साधनों का अधिक से अधिक वैज्ञानिक रूप से अपने कार्यों के लिए उपयोग करना होता है।
कृषि जलवायु क्षेत्रों की योजना
कृषि जलवायु क्षेत्र की योजना के अंतर्गत कृषि जलवायवी योजना का मुख्य लक्ष्य होता है कि वह ज्यादा से ज्यादा मानव निर्मित तथा प्रकृति द्वारा निर्मित दोनों ही साधनों का प्रयोग अधिक से अधिक कर सके।
कृषि-पारिस्थितिकी क्षेत्र जलवायु मुख्य रूप से फसल की उपज, वर्षा, मिट्टी के विभिन्न प्रकार तथा पानी की आवश्यकता, वनस्पतियों के विभिन्न प्रकार आदि के नेतृत्व को प्रभावित करने वाले कारणों को पूर्ण रूप से जाना होता है।
जलवायु परिवर्तन तथा इसके प्रभाव
जलवायु परिवर्तन के कारण विभिन्न विभिन्न प्रकार के प्रभाव पड़ते हैं जैसे कुछ देशों में हिमालय से लेकर दक्षिण एशिया के तटीय देशों में इस तरह की भयानक ग्लोबल वॉर्मिंग से लड़ने के लिए हर समय खुद को सक्षम रखते हैं।
तथा इस ग्लोबल वॉर्मिंग का हमेशा निडरता के साथ सामना करते हैं। प्राप्त की गई जानकारियों के अनुसार इन देशों में से दक्षिण एशिया अपनी 21वीं शताब्दी में 2 से लेकर 6 डिग्री सेल्सियस की अधिक गर्मी से भरपूर तापमान को झेल सकता है।
रविंद्रनाथ द्वारा दी गई सन 2007 में जानकारी के अनुसार कार्बन डाई का स्तर काफी उच्च स्तर पर था, या लगभग 410 के आसपास पीपीएम तक पहुंच चुका था। इसे ग्लोबल वॉर्मिंग का मुख्य कारण माना जाता है।
कुछ अन्य ऐसे भी क्षेत्र है जो इस ग्लोबल वॉर्मिंग के चलते सूखा झेल रहे हैं : यह क्षेत्र कुछ इस प्रकार है जैसे: हरियाणा कर्नाटक पश्चिम राजस्थान मध्य प्रदेश आंध्र प्रदेश दक्षिणी गुजरात दक्षिणी बिहार आदि सुखा प्रवण राज्य अनपेक्षित सूखे का सामना कर रहे हैं।
कृषि-जलवायु
कृषि जलवायु के अंतर्गत इसका वार्षिक तापमान लगभग 8 °c सेल्सियस होता है। जलवायु मृदु ग्रीष्म तथा बहुत कड़ी शीत वाला होती है। इन क्षेत्रों में औसत वार्षिक वर्षा सिर्फ 150 मी. मी. की दर पर बहुत कम होती है।
क्षेत्रों में क्राईक मुद्राएं वह शुष्क मृदा नियंत्रण रूप से पाई जाती है। इस स्थिति में फसल का वृद्धि काल सिर्फ 90 दिनों से ज्यादा दिनों तक विकसित नहीं होता।
कृषि भूमि प्रयोग पारिस्थितिकी
इन कृषि क्षेत्रों में काफी कम वन पाए जाते हैं। इन भूमि प्रति इकाई उत्पादन बहुत कम होता है। सब्जियों में अग्रवर्ती फसलें तथा वनस्पतियां ज्वार, बाजरा, गेहूं, चारा दालें आदि की फसलें उगाई जाती हैं।
फसलों के बीच में हल्की हल्की घास भी उगाई जाती हैं इन क्षेत्रों में फलों के रूप में सेब तथा खुबानी की खेती होती है। खेतों की जुताई के लिए भेड़, बकरी, याक खच्चर आदि पशुओं का इस्तेमाल किया जाता है।
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कृषि-जलवायु परिस्थितियों में जुताई की आवश्यकताएं
कृषि जलवायु परिस्थितियों में जुताई करते समय विभिन्न प्रकार की आवश्यकता की जरूरत होती है। भूमि को गहराई से कुछ इंचों की दूरी पर अच्छे से खोदना चाहिए। मिट्टी को हल के जरिए पलट पलट कर खुरदरा करना चाहिए।
ऐसा करने से नीचे की मिट्टी ऊपर आ जाती है। यह मिट्टियां उष्मा आदि के प्राकृतिक क्रिया द्वारा प्रभावित होकर अपना भुरभुरा रूप ले लेती हैं।
कृषि कार्य भूमि को वर्षा, सूर्य, वायु पाला, प्रकाश के संपर्क में उगाते हैं। कृषि इन स्थितियों में अपने खेतों की जुताई करते हैं।
- कृषि नई भूमि की जुताई करने से पूर्व विभिन्न प्रकार की सावधानियां बरतें हैं जैसे, की नई भूमि को जोतते समय पहले पेड़, पौधों को अच्छी तरह भूमि से काट लेते हैं। पूरी तरह भूमि को स्वच्छ कर लेते हैं उसके बाद किसी भारी यंत्र द्वारा अपने खेत की जुताई करते हैं। जुताई यंत्र द्वारा मिट्टी कटती है और फिर उन मिट्टी को ऊपर नीचे पलटा भी जाता है। इस तरह से कई बार खेतों की जुताई करते हैं और जब भूमि अपना गहराई का रूप ले लेती है तब मिट्टी फसल उगाने के लायक बन जाती है।
- इन खेतों की गहराई कम से कम 1 फुट होती है। इस नीचे वाली भूमि को गर्भतल के नाम से भी बुलाया जाता है। गर्भतल कभी-कभी अनुपजाऊ भी रह जाते हैं इस स्थिति में गहरी जुताई करने के बाद मिट्टी को उपजाऊ बनाना जरूरी होता है। गर्भतल की गहराई निश्चित आकार के रूप में ना की जाए, तो या अपना कठोर रुप ले लेती हैं। इसकी ऊपरी सतह बहुत ही ज्यादा कठोर बन जाती है। इस कठोर सतह को अंग्रेजी भाषा में प्लाऊ पैन के नाम से भी जाना जाता है। कृषि विशेषज्ञों के अनुसार यह कठोर तह बहुत ही हानिकारक होती है। सिंचाई व वर्षा जब होती है तो खेत में जल ज्यादा होते हैं और यह कठोर तह तक नहीं पहुंच पाते है।
मिट्टियों में काफी टाइम तक पानी भरा रहता है और इस वजह से विभिन्न प्रकार के कुछ हानिकारक कारण भी उत्पन्न हो जाते हैं खेतों में।
- सर्वप्रथम बीज बोने से पहले मिट्टी को किसी भी मिट्टी पलटने वाले यंत्र से उलट पलट देना चाहिए। मिट्टी पलटने के लिए भारी उपकरण का इस्तेमाल करें। हल के जरिए मिट्टी को अच्छी तरह से भुरभुरा कर देना चाहिए। खेत की आखिरी जुताई बहुत ही ध्यान से करनी चाहिए। मिट्टियों में मौजूद आर्द्रता का संरक्षण इस आखिरी बुवाई पर पूर्ण रूप से निर्भर होता हैं। यदि आर्द्रता अच्छे प्रकार से होती है तो बीज सफलतापूर्ण जम जाते हैं। केशिका नलियों के जरिए यह ऊपर की तह तक भली प्रकार से पहुंच जाते हैं।
- हल की मुठिया को खूब अच्छी तरह से पकड़ना चाहिए। ताकि जुताई करते टाइम हल का संपर्क सीधा गहराई से हो। खेतों की जुताई जलवायु के अनुसार खरीफ, रबी, जायद मौसम में विभाजित करनी चाहिए। इन्हीं के अनुसार फसलों की जुताई करनी चाहिए।
हम उम्मीद करते हैं कि आपको हमारी इस आर्टिकल के जरिए, विभिन्न कृषि-जलवायु परिस्थितियों में जुताई की आवश्यकताएं तथा अन्य जानकारी पूर्ण रूप से प्राप्त हुई होंगी।
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